धरती के भगवान
दहशत,अनिश्चितता , आपा धापी का माहौल,हर चेहरे पर उदासी, अपनों को खोने का गम ,मोबाइल से चिपके बच्चे ।
यही माहौल है इस समय दुनिया का ।
ऐसे में भी कुछ लोग मौकापरस्त और ठगी ,जमाखोरी,कालाबाजारी कर अपना मुनाफा कमा रहे,शायद ऐसे ही अवसरों की तलाश इन मानव शरीर में छुपे भेड़िए को।
पूजा और अभय दोनों डॉक्टर दंपति जो मरीजों की सेवा में अपनी खुशी अपनी स्वास्थ्य ,समय की आहुति दे रहे थे,।
कब लौटे कब नहीं ,उनकी कोई समय सारणी नही थी।आते खुद को अपने बच्चे से अलग रखना, उन्हें बहुत टीस देता था। वे चिंतित थे अपनी बच्ची के लिए।
आखिरकार पूजा ने फैसला लिया की गांव से अपने सास ससुर को बुला लिया जाए जिससे छोटी वैशाली को समय और सही परवरिश मिल सके।
अभय के पिता इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए थे,और उन्हे गांव में प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना पसंद था।इसलिए
उन्होंने वहां ऑर्गेनिक और मेडिसिनल पौधों की खेती वैज्ञानिकों की सलाह से शुरू की थी।
उनका मन वहीं रम गया था।उन्होंने एक कृषि विशेषज्ञ को रखा था ,जो समय समय पर सलाह के लिए आता था।
लेकिन बेटे बहु की चिंता सदा बनी रहती ।
पूजा ने अभय से कहा कि, मैं पापा को फोन कर रही हूं ,पापा मम्मी आ जायेंगे तो हम निश्चिंत होकर अपना काम कर पाएंगे।
अभय को शक था ,और उनकी चिंता भी ,उसने कहा पूजा वे लोग नहीं आयेंगे।क्योंकि पापा गांव के माहौल में रम गए हैं,और खेती में भी उन्हीं को सब देखना है।
पूजा ने कहा _,वे दोनों हमारे और वैशू के लिए बहुत चिंतित रहते हैं,मैने अभी तक उन्हें यही कहा सब ठीक है ,लेकिन लगता है,ये महामारी सालों तक खिंचेगी ,ऐसे में उन्हें बुलाना होगा।
वे लोग न नहीं कहेंगे।
अभय ने कहा _कर लो फोन।देखो वे लोग आते हैं?
पूजा हंसी _अभय मां भी है,बच्चे को थोड़ी मुसीबत में जान कर भी उसका कलेजा बाहर आ जाता है,पापा न नुकुर करेंगे भी तो मां नहीं। तुमने अपनी मां का प्यार जाना तो है लेकिन उनके प्यार को महसूस और पढ़ा नहीं।
पूजा ने अपने ससुर को फोन किया।
पूजा ने कहा , हैलो पापा प्रणाम । आप और मम्मी कुछ दिनों के लिए यहां दिल्ली आ जाइए।
क्यों क्या हुआ,सब ठीक तो है _पापा ने घबराते हुए पूछा ।
पूजा ने कहा ,पापा सबकुछ ठीक है ,लेकिन आप जानते हो ,हम दोनों हॉस्पिटल निकल जाते हैं,इस समय सुनीता भी नहीं आती ,वैशाली की देखभाल के लिए।
वैशाली 10 साल की ही तो बच्ची है , बहुत डरती है,जरा सी आहट होती है तो डर से उसके हाथ पैर फूल जाते हैं और शहर का माहौल और अकेली बच्ची ,पापा आप समझ रहे हैं न।
हां मैं समझ गया बहू,मैं और तुम्हारी मम्मी कल ही आते हैं।
दादी दादा आ रहे हैं_ये सुन कर वैशाली खूब खुश हो गई।
हां वैशू ,मम्मी पापा आ रहे ,अब वो हमारे साथ रहेंगे।
अगले दिन पूजा ने छुट्टी ले ली थी,छुट्टी बहुत मुश्किल से मिल रही थी,अभय भी चाहता था कि वो भी घर पर रहे लेकिन उसे छुट्टी नहीं मिली।
दोपहर तक दादा ,दादी आ गए।अब तो वैशू को मम्मी ,पापा की जरूरत नहीं थी।
दादी उसे धार्मिक,प्रेरक,,ऐतिहासिक कहानियां सुनाती,और वैशु उन्हें कंप्यूटर चलाना सिखाती।अब सुनीता भी आ गई थी ,वो भी खुश थी ,क्योंकि सावित्री(वैशु की दादी )उसे भी तरह तरह का देशी खाना सिखाती ।
दादा उसे अपने जमाने की बातें सुनाते।अब वैशु बहुत खुश थी , वहीं पूजा और अभय भी अब निश्चिंत हो अपने कार्य को सुचारू रूप से कर रहे थे।कुल मिला कर घर में चहल पहल हो गई थी।शहरी जिंदगी अकेलेपन से कुछ ज्यादा स्वयं में सीमित हो गई है।
संयुक्त परिवार की अपनी ही शोभा होती है।
एक दिन जब पूजा लौटी तो उसके साथ 4 साल की छोटी बच्ची थी। उस बच्ची की आंखों में डर, असुरक्षा साफ दिख रही थी। चेहरे पर काफी चोट थी।
बच्ची को भी नहला कर पूजा भी नहाकर आई। ,पूजा डाइनिंग टेबल पर जब सबके साथ बैठी तो सबकी आंखों में सवाल थे ?सब उसे चुपचाप घूर रहे थे।आखिरकार पूजा ने चुप्पी तोड़ी।
पूजा ने कहा _ वैशू,तुम निया को अपने कमरे में ले जाओ,सुनीता तुमलोगों का खाना कमरे में पहुंचा देगी।
सुनीता वैशू,और निया को कमरे में ले गई।
पूजा ने कहा_ मम्मी पापा,मैंने आपको एक महीने पहले बताया था न कि हॉस्पिटल में एक व्यक्ति एडमिट थे,उनकी कोरोना से मौत हो गई थी। उनकी पत्नी जो खुद भी कोरोना पॉजिटिव थी ,वो घर पर रह कर अपना इलाज करवा रही थी ।इस बच्ची को पड़ोसी देख रहे थे।
पति के मौत की खबर सुन ,पत्नी को हार्ट अटैक आ गया ,और वो भी भगवान को प्यारी हो गई।
हॉस्पिटल में पड़ोसी इस बच्ची को ले आया ,अब तक उम्मीद थी कि वो लोग ठीक हो जाएंगे तो पड़ोसी ने देख भाल की।
एक दिन एक व्यक्ति ,एक बच्ची को लेकर आया।
उसने अपना परिचय शैलेश के पड़ोसी सुनील के नाम से दिया।
बच्ची बड़ी मासूम थी,चारों ओर निहारती और सवाल करती ,ये अंकल ,आंटी यहां क्यों लेटे हैं।ऑक्सीजन वाले मरीज को देखकर पूछती इन्होंने क्या लगाया हुआ है ?
क्या यहां सब सोने आते हैं?पापा भी यहीं आ गए थे,मम्मी ही नहीं आई ।मुझे तो घर में अच्छी नींद आ जाती है।
सभी उसकी बात सुन सुन हंस रहे थे ,और उसकी मासूमियत पर प्यार भी उंडेल रहे थे।
सुनील (बच्ची का अंकल ) मेरे (डॉक्टर पूजा) के पास बच्ची को ले गया।उसने कहा_डॉक्टर कुछ कागज लेने है , शैलेश मिश्र जी की मौत ।अच्छा अच्छा ,अभी मंगवाती हूं। _ मैंने कहा ।
उसने फिर कहा ,डॉक्टर साहिबा , हम इस बच्ची को संभाल नहीं पाएंगे।इसको जहां भेजना हो भेज दीजिए।
कोई रिश्तेदार हैं बच्ची के_मैने पूछा ।
उसने कहा _एक चाचा थे ,उनकी भी मौत कोरोना से हो गई है।अब कोई नहीं है।
मुझे बच्ची की चिंता हो रही थी,बहुत ही मासूम थी।
मैने बच्ची से पूछा _बेटा क्या नाम है तुम्हारा?
उसने कहा _ नहीं बताऊंगी ,पहले टॉफी दो।
ज्यादातर मेरे पर्स में टॉफी पड़ी रहती है।
मैने उसे पर्स से निकाल तो किंडरजॉय दे दी।
वो खुश हो गई ,क्योंकि किंडरजॉय मिली थी,ये वैशु की मनपसंद चॉकलेट । वैशू के लिए रखा था।
उसने कहा_निया मिश्र।
मैने सुनील से पूछा _ तुम्हारे कितने बच्चे हैं?
2 _सुनील ने कहा।
देखो बच्ची तुमसे हिल मिल गई है ।तुम उसकी देखभाल कर लो,तो अच्छा है। सरकार ने ऐसे बच्चों की मुफ्त शिक्षा का प्रबंध कर रखा है,और इसका मुफ्त बीमा भी होगा।
अगर तुम इसको पाल लोगे तो हर महीने सरकार तुम्हें 4 हजार रुपए भी देगी।
नहीं तो मुझे राजकीय बाल गृह में भेजना होगा।
उसने इतना सुना तो ,फिर बोला ठीक है । मैं इसको ले जा रहा हूं।
पूजा ने कहा _ मैने उसे जरूरी कागजात जो हॉस्पिटल से देने थे ,उसे सौंप दिया।
आज 1महीने बाद ये बच्ची ,हमारे हॉस्पिटल में आई।
आप मानोगी नहीं मम्मी ,लोगों की मानवता जैसे खत्म हो चुकी है ,अब वो सिर्फ कद काठी से मनुष्य है ,सोच जानवरों की और स्वार्थपरता भरी पड़ी है।
आज मैं खुद को दोषी मानती हूं,ये जो भी हुआ उसमें शत प्रतिशत मेरा दोष है,और पूजा रोने लगी।
सावित्री धीरे से उठ ,पूजा के पास आईं।उन्होंने कहा_पूजा ,बात क्या हुई?तू कैसे दोषी है,जल्दी बता मेरा दिल बैठा जा रहा है।
मम्मी सुनील और उसकी पत्नी कनक ,इस बच्ची से घर का सारा काम कराते थे।उसे खाना तक नहीं देते थे।
जब ये नन्ही जान से कुछ गिर जाता ,या कोई खेलने की चीज ,सुनील की बेटी का उठा लेती तो कनक बहुत मारती।
महीने में जो पैसे सरकार खाते में भेजती उसके वे पति पत्नी मौज उड़ाते।
एक दिन दोनों पति पत्नी ,बच्चों संग कहीं चले गए ।और निया को एक कमरे में बंद कर दिया था।
निया की जोर जोर आवाज पास से गुजरते एक व्यक्ति ने सुना तो ,उसने पुलिस को फोन कर दिया।
पुलिस ने ताला तोड़कर निया को छुड़ाया।
निया की हालत तो आपलोग देख ही रहें हैं।
उसे मेरे ही हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
पुलिस उसे ठीक होने के बाद राजकीय बाल गृह छोड़ने वाली थी।
तब मैंने उसके बेहतर भविष्य के लिए खुद पालने का निर्णय लिया।
क्या पापा मम्मी मैं गलत हूं?
सावित्री देवी ने पूजा के ससुर की ओर देखा,दोनों ने ही मिलकर कहा,तुमने कुछ भी गलत नहीं किया मेरी बच्ची।अब हमारे दो दो पोतियां हैं।
लोग अपनी शौक के लिए कुत्ते पालते हैं ,उनको अच्छी सी अच्छी सुविधा देते हैं ,अपने बगल बिस्तर पर सुलाते हैं।
लेकिन किसी अनाथ बच्चे को अपना नहीं सकते ,एक रोटी तक नहीं देते ।
क्यों है अपना समाज ऐसा!!
तब तक अभय आ गया।
उसने कहा _ये आज क्यों गोलमेज सम्मेलन चल रहा है भाई।हमें भी कोई कुछ बताएगा।
हां ,क्यों नहीं ?तुम्हारी दो दो बेटियां हैं।
अरे अरे !!!ये कब हुआ?
वैशू ,निया को ले आओ।एक प्यारी सी बच्ची आ कर अभय के सामने खड़ी हो गई।पूजा ने अभय को सारी बात बताई।
अभय भी खुश था।उसे एक और नन्ही परी मिल गई,और वैशू को अपनी छोटी बहन ।
Seema Priyadarshini sahay
21-May-2022 04:13 PM
बेहतरीन रचना
Reply
Sangeeta singh
22-May-2022 06:57 AM
धन्यवाद🙏
Reply
Neelam josi
21-May-2022 03:26 PM
Very nice 👌
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Sangeeta singh
22-May-2022 06:57 AM
🙏
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Shrishti pandey
21-May-2022 10:32 AM
Nice
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Sangeeta singh
22-May-2022 06:58 AM
Thanks
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